भारतीय दंड संहिता की धारा २२८-A क्या है | 228A IPC in Hindi
( IPC Sec. 228A ) हिंदी में
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(2) उपधारा (1) की किसी भी बात का विस्तार किसी नाम या अन्य बात के ऐसे मुद्रण या प्रकाशन पर यदि उससे पीडित व्यक्ति की पहचान हो सकती है, तब लागू नहीं होता है जब ऐसा मुद्रण या प्रकाशन–
(क) पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा या उसके लिखित आदेश के अधीन अथवा ऐसे अपराध का अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी द्वारा, जो ऐसे अन्वेषण के प्रयोजनों के लिए सद्भावपूर्वक कार्य करता है, या उसके लिखित आदेश के अधीन किया जाता है; या
(ख) पीडित व्यक्ति द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से किया जाता है; या
(ग) जहां पीडित व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है अथवा वह अवयस्क या विकृतचित्त है वहां, पीडित व्यक्ति के निकट संबंधी द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से, किया जाता है:
परन्तु निकट संबंधी द्वारा कोई भी ऐसा प्राधिकार किसी मान्यताप्राप्त कल्याण संस्था या संगठन के अध्यक्ष या सचिव से चाहे उसका जो भी नाम हो, भिन्न किसी अन्य व्यक्ति को नहीं दिया जाएगा ।
स्पष्टीकरण - इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए “मान्यताप्राप्त कल्याण संस्था या संगठन से केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए किसी मान्यताप्राप्त कोई समाज कल्याण संस्था या संगठन अभिप्रेत है।
(3) जो कोई व्यक्ति उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी अपराध की बाबत किसी न्यायालय के समक्ष किसी कार्यवाही के संबंध में, उस न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना कोई बात मुद्रित या प्रकाशित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।
स्पष्टीकरण - किसी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के निर्णय का मुद्रण या प्रकाशन इस धारा के अर्थ में कोई अपराध नहीं है ।